वादा बनाम हकीकत: छत्तीसगढ़ में शिक्षा और रोजगार के नाम पर युवाओं से विश्वासघात!

छत्तीसगढ़, जिसे 'धान का कटोरा' कहा जाता है, अपनी प्राकृतिक संपदा और सादगी के लिए जाना जाता है। लेकिन हाल के वर्षों में, प्रदेश के युवाओं के लिए यह 'आशा का कटोरा' नहीं, बल्कि 'विलंब का गट्ठर' बनता जा रहा है। सरकारें बदलती हैं, वादे भी बदलते हैं, लेकिन एक चीज़ जो नहीं बदलती, वह है सरकारी घोषणाओं और उनके ज़मीनी क्रियान्वयन के बीच की गहरी खाई। शिक्षाकर्मी के 5000 पद हों या सहायक प्राध्यापक (Assistant Professor) की भर्ती – ये महज़ चुनावी जुमले बनकर रह गए हैं, जबकि प्रदेश का युवा वर्ग हताश और दिशाहीन है। यह ब्लॉग छत्तीसगढ़ सरकार की उन नाकामियों का आलोचनात्मक लेखा-जोखा है, जहाँ घोषणाएँ तो भव्य हुईं, लेकिन क्रियान्वयन शून्य रहा।

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​मुद्दा 1: शिक्षा क्षेत्र - कागज़ पर नियुक्ति, ज़मीन पर सन्नाटा

​छत्तीसगढ़ की शिक्षा व्यवस्था शिक्षकों की कमी से जूझ रही है। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के हजारों पद खाली हैं, जिसके कारण शिक्षा की गुणवत्ता लगातार गिर रही है।

  • शिक्षाकर्मी (शिक्षक) भर्ती का विलंब:
    • घोषणाएँ: विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स और सरकारी दावों के अनुसार, शिक्षाकर्मी (सहायक शिक्षक/शिक्षक) के हज़ारों पदों (जैसे 33,000, 14,000 या 5000) पर भर्ती की बात लगातार सामने आती रही है। 2023 की सीधी भर्ती में भी बड़ी संख्या में पद घोषित किए गए, लेकिन चयन प्रक्रिया के विभिन्न चरण (काउंसलिंग, दस्तावेज़ सत्यापन, पदस्थापन) वर्षों तक खिंचते रहे हैं।
    • आलोचना: जब तक ये पद भरे नहीं जाते, स्कूलों में बच्चों का भविष्य अधर में है। वर्षों से लंबित नियुक्तियों के कारण योग्य उम्मीदवार ओवरएज हो रहे हैं। डेटा के अनुसार, कुछ भर्तियां (जैसे सहायक शिक्षक भर्ती 2023 के कुछ चरण) आगे बढ़ी हैं, लेकिन समग्र रूप से '33,000 रिक्तियों' जैसे बड़े वादे (हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार) अभी भी पूरी तरह से 'अधिसूचना जल्द जारी होगी' की स्थिति में हैं, जो युवाओं की निराशा को बढ़ाता है।
  • सहायक प्राध्यापक (Assistant Professor) की धीमी गति:
    • घोषणाएँ: उच्च शिक्षा विभाग में लगभग 700 (जिसमें 625 सहायक प्राध्यापक) पदों पर भर्ती की अनुमति मिल चुकी है (सितंबर 2025 की रिपोर्ट्स के अनुसार)।
    • आलोचना: भर्ती की अनुमति मिलना पहला कदम है, लेकिन CGPSC के माध्यम से इसकी प्रक्रिया कब शुरू होगी, कब परिणाम आएगा और कब नियुक्ति होगी, यह अनिश्चित है। पिछली भर्तियों में भी सालों का विलंब देखने को मिला है। सरकारी कॉलेजों में शिक्षकों की कमी के कारण शोध कार्य और उच्च शिक्षा प्रभावित हो रही है। डेटा बताता है कि पिछले 12 वर्षों में भी कई भर्तियाँ रुकी रहीं, जिससे उच्च शिक्षा का ढाँचा कमज़ोर हुआ है।

​मुद्दा 2: सरकारी नौकरियों में भ्रामक घोषणाएँ और परिणाम का अभाव

​सिर्फ शिक्षा क्षेत्र ही नहीं, अन्य सरकारी विभागों में भी भर्ती का चक्रव्यूह युवाओं को थका रहा है।

  • विभागों में रिक्तियों का अंबार, लेकिन भर्ती कछुआ चाल:
    • तथ्य: विभिन्न विभागों (पुलिस, स्वास्थ्य, पटवारी, व्यापम के तहत अन्य पद) में हजारों पद रिक्त हैं। सरकारें समय-समय पर '8,971 पदों' या '36,420 पदों' पर भर्ती की बात करती रही हैं।
    • विडंबना: इन घोषणाओं के बावजूद, नियुक्तियाँ टुकड़ों में और बहुत धीमी गति से हो रही हैं। अधिकांश भर्तियाँ या तो विवादों में फंसी हैं, या उनकी प्रक्रिया न्यायिक विलंब का शिकार हुई है।
    • परिणाम: बेरोजगारी दर पर इसका स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। भारत सरकार के P.L.F.S. (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण) के आँकड़ों के बावजूद, छत्तीसगढ़ में शिक्षित बेरोज़गारों की संख्या चिंताजनक स्तर पर है, क्योंकि सरकारी भर्तियाँ समय पर पूरी नहीं हो पाती हैं।

​मुद्दा 3: अन्य क्षेत्रों में सरकारी असफलताएँ

​शिक्षा और रोज़गार के अलावा, सरकार कुछ अन्य प्रमुख वादों को पूरा करने में भी सफल नहीं रही है:

  • आर्थिक नीतियाँ और निवेश प्रोत्साहन: औद्योगिक विकास नीति (2024-30) जैसी योजनाएँ तो लाई गईं, लेकिन स्थानीय रोज़गार को प्राथमिकता देने और निवेश को ज़मीनी स्तर पर उतारने के लिए ठोस प्रयास कम दिखते हैं। केवल नीतियों से नहीं, क्रियान्वयन से राज्य का विकास होता है।
  • ग्रामीण विकास और मूलभूत सुविधाएँ: दूरस्थ अंचलों में स्वास्थ्य और परिवहन की सुविधाएँ आज भी एक चुनौती हैं। सड़कों का निर्माण हो या स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की उपलब्धता - विकास का दावा एकतरफ़ा दिखता है, जबकि ज़मीनी हकीकत कुछ और बयां करती है।
  • किसान और आदिवासी नीतियाँ: किसानों के लिए ऋण माफी और समर्थन मूल्य की घोषणाएँ महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उपज की खरीदी में विलंब और मंडी व्यवस्था की कमियाँ किसानों को परेशान करती हैं। वनोपज के संग्रहण और मूल्य संवर्धन की योजनाओं को भी अपेक्षित गति नहीं मिल पाई है, जिससे आदिवासी अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है।

​निष्कर्ष: वादे 'विकास' के, परिणाम 'विफलता' के

​छत्तीसगढ़ सरकार की आलोचनात्मक समीक्षा यह दर्शाती है कि घोषणाएँ करना आसान है, लेकिन उन्हें ज़मीनी स्तर पर उतारना एक बड़ी चुनौती है। शिक्षाकर्मी और सहायक प्राध्यापक जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भर्ती में अनावश्यक विलंब, युवाओं के साथ एक मज़ाक है। सरकार को समझना होगा कि नौकरी सिर्फ़ आंकड़ा नहीं है, यह हज़ारों परिवारों का भविष्य है। यदि सरकार युवाओं के भविष्य को लेकर गंभीर है, तो उसे तुरंत इन लंबित भर्तियों को मिशन मोड पर पूरा करना होगा और भविष्य की भर्तियों के लिए एक पारदर्शी और समयबद्ध कैलेंडर बनाना होगा।

​छत्तीसगढ़ को एक बेहतर भविष्य की ओर ले जाने के लिए, अब समय आ गया है कि सरकार 'वादों की राजनीति' छोड़कर 'क्रियान्वयन की प्रतिबद्धता' दिखाए।

​अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

  1. शिक्षाकर्मी/शिक्षक के कितने पद लंबित हैं?
    • ​विभिन्न चरणों में हजारों पद (जैसे 2023 भर्ती के लंबित पद, और 33,000 की नई अनुमानित घोषणा) लंबित या प्रक्रियाधीन हैं, जिनकी अंतिम नियुक्ति में विलंब हो रहा है।
  2. सहायक प्राध्यापक भर्ती में विलंब का मुख्य कारण क्या है?
    • ​मुख्य कारण भर्ती प्रक्रिया को शुरू करने और पूरा करने में सरकारी और PSC (लोक सेवा आयोग) स्तर पर होने वाला प्रशासनिक विलंब और न्यायिक विवाद हैं।
  3. क्या छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है?
    • ​डेटा अलग-अलग समय पर बदलता है, लेकिन शिक्षित युवाओं के बीच सरकारी नौकरी के लिए हताशा दर्शाती है कि उच्च गुणवत्ता वाले रोजगार के अवसर पर्याप्त नहीं हैं, और सरकारी भर्तियाँ पूरी होने में बहुत समय लेती हैं।
  4. विलंबित भर्तियों से युवाओं पर क्या असर पड़ रहा है?
    • ​युवाओं में निराशा, मानसिक तनाव और कुछ मामलों में योग्य उम्मीदवारों का 'ओवरएज' हो जाना सबसे बड़ा नकारात्मक प्रभाव है।
  5. अन्य कौन से विभाग हैं जहाँ भर्ती अटकी हुई है?
    • ​पुलिस विभाग, स्वास्थ्य विभाग (नर्सिंग, टेक्नीशियन), और व्यापम के तहत होने वाली अन्य विभिन्न लिपिकीय भर्तियाँ अक्सर विलंब का शिकार होती हैं।
  6. सरकार की औद्योगिक नीतियों की मुख्य आलोचना क्या है?
    • ​आलोचना यह है कि नीतियाँ कागज़ पर अच्छी हैं, लेकिन निवेश को आकर्षित करने और स्थानीय युवाओं के लिए गैर-सरकारी रोजगार सृजित करने में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है।
  7. क्या किसी भर्ती को पूरा करने के लिए कोई समय-सीमा तय की गई है?
    • ​नहीं, अधिकांश भर्तियों को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा कोई कठोर या सार्वजनिक समय-सीमा तय नहीं की जाती है, जिससे पारदर्शिता की कमी रहती है।
  8. सरकार की आलोचना में 'डेटा' का क्या महत्व है?
    • ​डेटा (जैसे लंबित पदों की संख्या, विलंब के वर्ष, बेरोजगारी के आँकड़े) आलोचना को ठोस आधार प्रदान करता है और बताता है कि घोषणाएँ हकीकत से कितनी दूर हैं।
  9. भर्ती में पारदर्शिता के लिए क्या किया जाना चाहिए?
    • ​एक निश्चित वार्षिक भर्ती कैलेंडर जारी करना, ऑनलाइन प्रक्रियाओं को मजबूत करना, और न्यायिक विवादों को तेज़ी से निपटाने के लिए विशेष प्रकोष्ठ स्थापित करना।
  10. क्या सरकार ने किसी अन्य महत्वपूर्ण वादे को पूरा करने में भी विलंब किया है?
    • ​हाँ, किसानों से संबंधित कुछ घोषणाओं का क्रियान्वयन, मूलभूत स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार और आदिवासी क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं को गति देने में भी विलंब देखा गया है।
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​"नमस्कार! मेरा नाम गोविंद श्रीवास है, और मैं एक शिक्षक हूँ। Curioustalk.in के माध्यम से, मेरा उद्देश्य आपकी जिज्ञासा को ज्ञान और सफलता में बदलना है। मेरा मानना है कि हर जिज्ञासा सफलता की पहली सीढ़ी है, और मैं आपको अनिश्चितताओं से परे स्पष्टता की ओर ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हूँ।"

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